नई दिल्ली — भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने और सुस्त पड़ी उपभोक्ता मांग को फिर से पटरी पर लाने के लिए, सरकार और उद्योग जगत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों में कटौती की चर्चा एक बार फिर जोर पकड़ रही है। माना जा रहा है कि यह कदम एक बड़े “आर्थिक प्रोत्साहन” के रूप में काम कर सकता है, जिससे त्योहारी सीजन से पहले बाजार में रौनक लौट सकती है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या जीएसटी दरों में कटौती वास्तव में खपत में एक बड़ा उछाल लाने में सक्षम होगी?

अर्थशास्त्रियों और बाजार के विशेषज्ञों की इस पर मिली-जुली राय है। एक ओर जहां इसका समर्थन करने वाले इसे मांग बढ़ाने का अचूक उपाय बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञ इसके कारण सरकारी खजाने पर पड़ने वाले असर और महंगाई के जोखिम को लेकर चिंतित हैं।
कटौती के पीछे का तर्क और संभावित लाभ
जीएसटी दरों में कटौती का मूल सिद्धांत बेहद सीधा है: जब वस्तुओं पर टैक्स कम होता है, तो उनकी कीमतें घट जाती हैं। कीमतें कम होने से वे आम उपभोक्ता की पहुंच में आ जाती हैं, जिससे उनकी क्रय शक्ति (purchasing power) बढ़ती है। जब लोग अधिक सामान खरीदते हैं, तो कंपनियों का उत्पादन बढ़ता है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होते हैं और अर्थव्यवस्था का चक्र तेजी से घूमने लगता है।
- किन क्षेत्रों को मिलेगा फायदा: इस कटौती का सबसे ज्यादा फायदा ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स (जैसे टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन), और सीमेंट जैसे क्षेत्रों को मिलने की उम्मीद है, जिन पर वर्तमान में 28% की उच्चतम जीएसटी दर लागू है। उदाहरण के लिए, अगर एक कार पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% कर दिया जाता है, तो उसकी कीमत में सीधे तौर पर बड़ी गिरावट आएगी, जो ग्राहकों को खरीदारी के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
- मध्यम वर्ग को राहत: भारत का एक बहुत बड़ा मध्यम वर्ग है, जिसकी खर्च करने की क्षमता सीधे तौर पर देश की खपत को प्रभावित करती है। जीएसटी में कमी से इस वर्ग को बड़ी राहत मिल सकती है, जिससे वे अपनी रुकी हुई खरीदारी की योजनाएं पूरी कर सकते हैं।
चुनौतियां और चिंताएं: क्या यह कदम उल्टा पड़ सकता है?
जीएसटी कटौती का विचार जितना आकर्षक लगता है, इसकी राह में उतनी ही चुनौतियां भी हैं। विशेषज्ञों ने कुछ प्रमुख चिंताओं को रेखांकित किया है:
- सरकारी राजस्व पर भारी असर: जीएसटी केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के लिए राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है। दरों में किसी भी बड़ी कटौती का सीधा मतलब होगा सरकारी खजाने में भारी कमी। ऐसे में सरकार को अपने कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचे के विकास के खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है। इससे राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) बढ़ने का भी खतरा है, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक नकारात्मक संकेत हो सकता है।
- क्या कंपनियां फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएंगी?: सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या कंपनियां टैक्स कटौती का पूरा लाभ ग्राहकों को देंगी। कई बार ऐसा देखा गया है कि कंपनियां टैक्स में कमी का एक हिस्सा अपने मुनाफे को बढ़ाने में इस्तेमाल कर लेती हैं और कीमतों में मामूली कटौती ही करती हैं। यदि ऐसा होता है, तो इस पूरे अभ्यास का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।
- महंगाई का जोखिम: अगर मांग में अचानक बहुत तेज उछाल आता है और आपूर्ति (supply) उस गति से नहीं बढ़ पाती है, तो यह महंगाई को जन्म दे सकता है। मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन से वस्तुओं की कीमतें फिर से बढ़ सकती हैं, जिससे टैक्स कटौती का असर खत्म हो जाएगा।
क्या समस्या सिर्फ टैक्स की है?
कई विश्लेषकों का यह भी मानना है कि बाजार में सुस्ती का एकमात्र कारण ऊंची जीएसटी दरें नहीं हैं। नौकरी की अनिश्चितता, बढ़ती ब्याज दरें, और ग्रामीण क्षेत्रों में आय में कमी जैसे कई अन्य कारक भी हैं जो लोगों को खर्च करने से रोक रहे हैं। ऐसे में, सिर्फ जीएसटी घटाना शायद पूरी समस्या का समाधान न हो। इसके लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता होगी जो लोगों की आय बढ़ाने और उनके भविष्य को सुरक्षित करने पर केंद्रित हो।
निष्कर्ष और भविष्य की राह
निश्चित रूप से, जीएसटी दरों में कटौती एक शक्तिशाली कदम हो सकता है जो अल्पकालिक रूप से बाजार में उत्साह भर सकता है। यह उपभोक्ता के भरोसे को बढ़ाने और रुकी हुई मांग को फिर से शुरू करने के लिए एक “शॉक थेरेपी” की तरह काम कर सकता है। हालांकि, यह एक दोधारी तलवार है।
सरकार को इस पर फैसला लेते समय बहुत सावधानी बरतनी होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि कटौती लक्षित हो, इसका लाभ सीधे ग्राहकों तक पहुंचे, और सरकारी राजस्व पर पड़ने वाले प्रभाव को संभालने के लिए एक ठोस योजना तैयार हो। अंततः, इस प्रोत्साहन की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह कदम कितनी चतुराई से और किस समय पर उठाया जाता है। अर्थव्यवस्था को एक अस्थायी बूस्ट देने और लंबी अवधि की वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के बीच संतुलन साधना ही सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।